विशेष :

राष्ट्र निर्माण में युवा वर्ग की भूमिका

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

Indian Youth

हमारा देश अभी भी अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ेपन एवं सामाजिक अन्याय से पीड़ित है। विश्‍व शान्ति एवं सांस्कृतिक सद्भाव का प्रेरक देश आज आतंकवाद एवं उग्रवाद के विस्फोटों से ग्रस्त है। जातीय और साम्प्रदायिक हिंसा हमारे देश के लिए खतरा बनी हुई है। समूचा राष्ट्र भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। पूरा समाज आज नेतृत्व-विहीन है। राजनीति भ्रष्टाचार एवं अपराध का पर्याय बन गयी है। लोकतन्त्र की व्यवस्था उपहास मात्र बनती जा रही है। राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य एक अंधेरी गली में खो गया है। राष्ट्रव्यापी असंतोष, अव्यवस्था आज देश की बुरी स्थिति को प्रकट कर रही है। ऐसी विषम परिस्थितियों से जूझने की सामर्थ्य किसमें है? उलटे प्रवाह को उलटकर सीधा करने का साहस कौन कर सकता है? इन सभी प्रश्‍नों के उत्तर में हम युवा शक्ति का आह्वान करते हैं। सभी इस बारे में एकमत हैं कि युवाओं में प्रचण्ड ऊर्जा है, भले ही आज वह दिशाहीन होकर बिखर रही है। हमें इस युवाशक्ति को उचित दिशा की ओर प्रेरित करना चाहिए, जिससे हमारे राष्ट्र का निर्माण सफलतापूर्वक हो सके और हमारा भारत प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त कर सके।

अपनी मनोभावनाओें को मनुष्य अपने सामने वालों पर थोप देता है और उन्हें वैसा ही समझता है जैसा कि वह स्वयं है। संसार एक लम्बा-चौड़ा बिल्लौरी काँच का चमकदार दर्पण है, इसमें अपना चेहरा हुबहू दिखाई पड़ता है। जो व्यक्ति जैसा है, उसके लिए सृष्टि में वैसे ही तत्व निकलकर आगे आ जाते हैं। सतयुगी आत्माएँ हर युग में रहती हैं और उनके पास सदैव सतयुग बरसता रहता है। आशावादी व्यक्ति कठिन और असम्भव से प्रतीत होने वाले कार्यों में जहाँ सफलता प्राप्त कर लेता है, वहीं निराशावादी मनोवृत्ति वाला व्यक्ति साधारण-सी समस्या और कठिनाइयों को भी पार नहीं कर पाता है।

सदैव राष्ट्रीय गौरव की सुरक्षा के लिए युवाओं ने ही अपने कदम बढाये हैं। संकट चाहे सीमाओं पर हो अथवा सामाजिक एवं राजनैतिक, इसके निवारण के लिए अपने देश के युवक-युवतियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आवश्यकता यही है कि अपने हृदय में समाज की कसक उत्पन्न करें और अपनी बिखरी शक्तियों को एकत्रित करके समाज की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने में लगायें। देश की प्रगति ही अपनी प्रगति और उन्नति है। इस श्रेष्ठ विचार के आधार पर ही युवाशक्ति राष्ट्रशक्ति बनकर राष्ट्र को समृद्धि, उन्नति व प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है।

किसी देश का विकास भीड के सहारे नहीं, बल्कि मूर्धन्य प्रतिभाओं के सहारे होता है। आज बड़े दुःख की बात है कि अधिक धन एवं सुख-सुविधा के लोभ में देश की युवा प्रतिभाएँ विदेशों में अपना रैन-बसेरा बनाने के लिए आतुर हैं। किसी भी देश के नवनिर्माण में ज्ञान एवं युवाशक्ति का योगदान सदा ही रहा है। परन्तु किसी भी काल में यह इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा होगा, जितना कि आज के इस वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के युग में है। इन क्षणों में प्रत्येक युवा को जो महान् पाठ सीखना है, वह है परिश्रम, त्याग और प्रत्येक व्यक्ति को सबके हित में कार्य करने का पाठ।

सबके जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता समान रूप में नहीं आती, किसी के जीवन में कम और किसी के जीवन में ज्यादा। परन्तु इन परिस्थितियों का सर्वथा अपवाद कोई नहीं हो सकता यह एक सच्चाई है, जिसे हर व्यक्ति को स्वीकार करना ही पड़ता है। इसीलिए इन परिस्थितियों से घबराना कायरता है। हमें इन प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जो भावनात्मक स्तर पर अपना संतुलन बनाये रखता है, वह बाह्य कारणों से प्रभावित नहीं होता है। इसीलिए हमें शरीर को आरंभ से ही प्रतिकूलताओं को सहन करने हेतु सक्षम बनाना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति की भाँति प्रत्येक राष्ट्र का भी एक विशेष जीवनोद्देश्य होता है। वही उसके जीवन का केन्द्र होता है, उसके जीवन का प्रधान स्तर है, जिसके साथ अन्य सब स्वर मिलकर समरसता उत्पन्न करते हैं। भारतवर्ष में धार्मिक जीवन ही राष्ट्रीय जीवन का केन्द्र है और वही जीवन रूपी संगीत का प्रधान स्वर है। यदि कोई राष्ट्र अपनी स्वाभाविक जीवनी शक्ति को दूर फेंक देने की चेष्टा करे, उससे विमुख हो जाने का प्रयत्न करे और यदि वह अपने इस कार्य में सफल हो जाय, तो वह राष्ट्र मृत हो जाता है। अतः अपनी प्रत्येक क्रिया का केन्द्र धर्म नैतिकता-सदाचार को ही बनाना होगा। युवाओं में किसी प्रकार का सुधार या उन्नति की चेष्टा करने के पहले धर्म प्रचार आवश्यक है। संसार को समाजवादी अथवा राजनैतिक विचारों से भरने से पहले आवश्यक है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाय। पहले यही धर्म-प्रचार आवश्यक है। धर्म-प्रचार करने के बाद उसके साथ ही साथ लौकिक विद्या और अन्यान्य आवश्यक विद्याएँ अपने आप ही आ जायेंगी। मनुष्य केवल मनुष्य भर ही होना चाहिए। बाकी सब कुछ अपने आप ही हो जायेगा। अब अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और मर्द बनो। हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जिससे हम मनुष्य बन सकें। हम निश्‍चयपूर्वक कह सकते हैं कि इन हृदयवान् उत्साही युवकों के भीतर से ही सैकड़ों वीर उठेंगे, जो हमारे पूर्वजों द्वारा प्रचारित सनातन आध्यात्मिक सत्यों का प्रचार करने और शिक्षा देने के लिए संसार के एक छोर से दूसरे छोर तक भ्रमण करेंगे। आज युवकों के सामने यही महान् कर्त्तव्य है। अतएव एक बार फिर हमारे देश के युवकों के ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ का अनुसरण करना चाहिए। - गौरीशंकर शर्मा

Role of youth in nation building | social injustice | World peace and cultural harmony | Politics Corruption and Crime | Goal of nation building | Youth power call | Proper direction to youth power | Work in the interest of everyone | Religious life is the only national life | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Lahora - Khrew - Gohana | News Portal - Divyayug News Paper, Current Articles & Magazine Lakheri - Khour - Haileymandi | दिव्ययुग | दिव्य युग


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान