ओ3म् अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथी:।
अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन् ॥ ऋग्वेद 6.66.7॥
शब्दार्थ- (मरुत:) हे मरुतो! वीर सैनिको! (व:) तुम्हारा (याम:) यान, जहाज (अन् एन:) निर्विघ्न गतिकारी (अस्तु) हो। तुम्हारा वह यान (रज: तू:) अणुशक्ति से चालित हो (यम्) जो (अन्अश्व:) बिना घोड़ो के (अरथी:) बिना सारथि के (अनवस:) बिना अन्न, बिना लकड़ी, कोयता या पैट्रोल के (अन् अभीशू:) बिना रासों के, बिना लगाम के (चित्) ही (रोदसी) भूमि पर और आकाश में (अजति) चल सके, जा सके (पथ्या साधन्) गतियों को साधता हुआ (वि याति) विशेष रूप से और विविध प्रकार से गति कर सके।
भावार्थ- मन्त्र में अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में अणुशक्ति से चालित यान का वर्णन है। देश के सैनिकों के पास इस प्रकार के यान होने चाहिएँ जो बिना ईंधन, लकड़ी और पैट्रोल के ही गति कर सकें। कैसे हों वे यान?
1. वे यान अणु-शक्ति से चालित होने चाहिएँ।
2. उनमें घोड़े जोतने की आवश्यकता न हो।
3. उनमें लकड़ी, कोयला, हवा, पानी, पैट्रोल की आवश्यकता भी न हो।
4. उनमें लगाम, रास अथवा संचालक साधन की आवश्यकता न हो। वे स्वचालित हों।
5. वे भूमि पर भी चल सकें और आकाश में भी गति कर सकें।
6. वे विभिन्न प्रकार की गतियाँ करने में समर्थ हों। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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