लोकसभा में संविधान दिवस पर हुई चर्चा में कांग्रेस नेता श्री खड़गे ने आर्यों को बाहर से आया हुआ बताया है। श्री खड़गे जी यह बताएं कि यदि आर्य बाहर से आये हैं तो इनके आने से पहले यहाँ कौन रहते थे और इस देश का नाम क्या था ? इतिहास तो इस देश के सभी निवासियों को आर्य मानता है। इस देश का प्राचीनतम नाम आर्यावर्त है। श्री खड़गे की नई खोज इस विषयक हो तो देश को बताएं।
भारत वर्ष की लगातार अत्यन्त त्रुटिपूर्ण शिक्षा का ही ये कमाल है कि हम अपने देश में ही अपने आपको विदेशी आक्रमणकारी की संज्ञा से सम्बोधित करते हैं, जिसके कारण बहुत सारे लोग (और इसमें लगातार वृद्धि भी हो रही है) अपने को आर्य और कुछ द्रविड़ बताते हैं, जिसके कारण उनके ह्रदय एक नहीं हो पाते हैं और वो अपने आपको अलग संस्कृति का मानते हैं। ये बड़ी ही विकट और हास्यास्पद बात है कि बहुत सारे दक्षिण भारतीय लोग अब भी उत्तरी भारतीय लोगों को आक्रमणकारी और अलग संस्कृति का समझते हैं तथा इनकी इस समझ में बहुत सारे नेता भी बढ़-चढ़ कर साथ देते हैं, जिससे देश विखण्डन की ओर बढ़ रहा है। करीब पौने दो सौ साल पहले ब्रिटिश शासकों द्वारा बड़ी चालाकी से भारतीय शिक्षा में ये लिखवा दिया गया कि उत्तरी भारतीय लोग यहाँ के नही हैं, मध्य एशिया से यहाँ पर आए हैं और उन्होंने यहाँ पर यहाँ के वास्तविक लोगों को गुलाम बना लिया। बाद में उनका साथ हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने एक तर्कहीन किताब उन्हीं की नक़ल से डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया लिखकर अपनी अंग्रेजी भक्ति का परिचय दिया। इस बात का आज की पीढी पर बड़ा ही कुप्रभाव पड़ा है। उनके पास कोई भी प्रमाण नहीं है कि आर्य बाहर से आए हैं, सिर्फ़ बेसिर-पैर कि बातों के अलावा। जैसे NCERT की पुस्तकों में लिखा है कि आर्य पहले कहीं साउथ रूस से मध्य एशिया के मध्य में कहीं रहते थे। क्योंकि कुछ जानवरों के नाम जैसे वेस, Horse, सेरी (कुत्ता, घोडा, बकरी) आदि और कुछ पौधों के नाम पाइन, मेपल आदि जैसे शब्द सभी इण्डो- यूरोपियन भाषाओं में एक जैसे हैं। इससे ये पता लगता है कि आर्य नदियों और जंगलों से परिचित थे। सबसे पहले तो ये इण्डो-यूरोपियन भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है और विश्व की सभी भाषाओं में संस्कृत के शब्द मिल जायेंगे। सभी भाषाओं के आदि में संस्कृत है। जरा अनुसन्धान करके तो देखो।
सच तो यह है कि यह देश आर्यों ने ही बसाया था और आर्य ही इस देश के मूलनिवासी हैं। इस्लामिक एवं क्रिस्तानी आक्रमण का चेहरा बचाने के लिए वामपन्थी-पश्चिमी इतिहासकारों ने आर्य आक्रमण-सिद्धान्त का झूठा गप्पजाल प्रचारित किया है। - आचार्य डॉ.संजय देव (दिव्ययुग- जनवरी 2016)
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