आज सदियों से लोगों में इस बात की बहस छिड़ी हुई है कि क्या ईश्वर है अथवा नहीं जिस वजह से मानव समुदाय आज दो वर्गों में विभाजित हो गया है। एक बड़ा वर्ग वो है जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखता है वहीं दूसरा वर्ग वो है जो मानता है कि ईश्वर नाम की कोई चीज नहीं है और संसार में जो कुछ भी हो रहा है वो अपने आप ही हो रहा है और इनकी संख्या भी करोड़ों में है।
यहाँ हम न तो धर्म ग्रन्थों का सहारा ले रहे हैं और न ही कोई तर्क-वितर्क बल्कि कुछ तथ्यों को प्रस्तुत कर रहे हैं, देखना होगा कि ये तथ्य किस और ईशारा कर रहे हैं।
आज दुनियाँ में अरबों-खरबों लोग हैं और इसके पूर्व में भी अरबों-खरबों लोग पैदा हुए और मर भी गए, आगे भी कितने अरबों-खरबों लोग पैदा होंगे पर कितना बड़ा आश्चर्य है कि इनमें से किसी का भी चेहरा किसी अन्य से नहीं मिलता है, यानि सबके चेहरे अलग-अलग प्रकार के हैं, यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चों में भी बहुत अधिक समानता होते हुए उनमें भी कुछ अन्तर होता है जिसे उसकी माँ अवश्य ही जानती है। यहाँ पर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वो कौन है? जो हर किसी का एक दूसरे से अन्तर बनाए रखता है। उनका सिर्फ चेहरा ही नहीं उनके फिंगर प्रिण्ट भी अलग-अलग प्रकार के होते है। यहाँ पर थोड़ी देर के लिए कल्पना की जाए कि उनके चेहरे अलग-अलग प्रकार के न होकर सिर्फ दो प्रकार के हों, पहला मर्दों के लिए अलग और महिलाओं के लिए अलग तो फिर क्या होगा और उनकी आवाजें भी अलग-अलग प्रकार की न होकर एक ही प्रकार की हों तो कितनी बड़ी अव्यवस्था फैल जाएगी। पर ऐसा न होकर अलग-अलग प्रकार की है। निर्माण करने वाले को इसका पुर्वानुमान था, इसी से पता चलता है कि वो कितना बड़ा दूरदर्शी भी है। सिर्फ मनुष्य का चेहरा ही नहीं बल्कि जानवरों का चेहरा भी अलग-अलग प्रकार का होता है तभी तो हजारों भेड़ों की झुण्ड में भी भेड़ का बच्चा अपनी माँ को ढूँढ लेता है और उसका ही दूध पीता है।
प्रकृति में भी हजारों प्रकार की वनस्पतियों की प्रजातियाँ होती है पर हर वनस्पति के पत्ते, फूल और फल अलग-अलग प्रकार के होते हैं, सबके रूप, रस, गंध और स्वाद भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, क्या रहस्य है?
ईश्वर को जानने के लिए बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। हम निर्माणकर्त्ता की सबसे अनुपम कृति इस मानव शरीर को देखें तो पता चलेगा कि कितनी ही बुद्धिमत्तापूर्वक इसकी संरचना की गई है। विज्ञान का विषय है कि कर्त्ता के बिना किसी क्रिया का सम्पादन नहीं होता है और न ही निर्माण। निर्माण है तो कोई निर्माणकर्त्ता भी होगा, रचना है तो कोई रचनाकार भी होगा। ऐसा बिल्कुल सम्भव नहीं कि निर्माण है मगर निर्माणकर्त्ता नहीं हो। तो आइए थोड़ा देखें कि इस मानव शरीर निर्माण में कितनी बुद्धिमत्तापूर्वक कौन-कौन सी चीजें प्रदान की गई हैं।
चमड़ी से ढका मानव शरीर बिना सूई-धागे के किसी प्रकार से सिया गया है कि पता ही नहीं चलता। मानव शरीर में 36 लीटर पानी रहता है, इसमें चीनी 1 किलो, अमोनिया 2 किलो, नमक 150 ग्राम, लोहा इतना कि अगर जमा किया जाए तो 2 इंच मोटी कील बन सकती है गन्धक इतना कि 100 दिया सलाई की तीलीयाँ बनाई जा सकती है, चर्बी इतनी कि इससे 7 साबुन की टिकिया बनाई जा सकती है। 72 करोड़ 72 लाख 10 हजार 110 नस नाड़ियों का जाल शरीर के कोने-कोने में फैला हुआ है। आज तक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इसकी गिनती नहीं कर सका है।
सवाल है कि मानव शरीर में 36 लीटर पानी किसने और क्यों सुनिश्चित किया है क्योंकि पानी की मात्रा अगर बढ जाए तो भी परेशानी और अगर कम हो जाए तो जान पर बन जाती है इसलिए तुरन्त ही बाहर से पानी चढाया जाता है। इसी प्रकार से अन्य चीजों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान है।
आगे देखिए मानव शरीर में 1 मिनट में 16-17 श्वासें निरन्तर चल रही हैं। यह दिल 24 घण्टे में 1 लाख 13 हजार बार धड़कता है इस प्रकार यह पूरे जीवन काल में करोड़ो बार धड़कता होगा और फिर एक दिन ऐसा आता है जब दिल धड़कना बन्द हो जाता है और फिर जीवन लीला समाप्त हो जाती है, आखिर कौन है इसका नियन्त्रणकर्त्ता।
एक व्यस्क मानव शरीर में 5-6 लीटर रक्त होता है, महिलाओं में इसकी मात्रा 1/2 लीटर कम होती है, रक्त का कार्य ताप का नियन्त्रण तथा शरीर की रोगों से रक्षा करना होता है। इस रक्त में निरन्तर संचार होता रहता है जिसे Blood Circulation कहा जाता है। क्या रक्त संचार अपने आप होता है?
मानव शरीर में 206 हड्डियाँ होती हैं। सिर में 29 हड्डियाँ होती है, रीढ में 26 रहती हैं, कपाल में 8, चेहरे में 14 और कान में 6 हड्डियाँ होती हैं। ईश्वर की अवधारणा में विश्वास नहीं रखने वाले कृपया यह बताएँ कि शरीर में 206 हड्डियाँ क्यों प्रदान की गई हैं? अगर 206 के बदले में सिर्फ एक हड्डी हो तो क्या हो जाएगा। यही होगा कि न तो हम उठ सकते है, नहीं मुड़ सकतें हैं। और न ही चल-फिर सकते हैं। मानव शरीर के दोनों हाथों में 5-5 अंगुलियाँ प्रदान की गई हैं, अगर ये अंगुलियाँ न हों तो दुनियाँ का सारा मेकेनिज्म और टेक्नोलॉजी धरी की धरी रह जाएगी। इसका मतलब है कि शरीर निर्माण की हर बात में विज्ञान छिपा हुआ है।
अब हम मानव शरीर से बाहर आकर इस ब्रह्माण्ड को देखें। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह और नक्षत्र गतिशील हैं। हमारी पृथ्वी भी अपने अक्ष पर एक हजार मील प्रत्येक घण्टे की चाल से लट्टू की तरह घूमती है जिस वजह से दिन और रात होते हैं। इसी प्रकार हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों और भी 66 हजार मील प्रति घण्टे की रफ्तार से चक्कर लगाती है और 365 दिन 56 मिनट और 46 सेकण्ड में एक चक्कर लगाती है। यही कारण है कि 365 दिनों को एक साल माना जाता है। हमारा सूर्य भी अपने सभी ग्रहों और सौर मण्डल को साथ लेकर घूम रहा है, सूर्य प्रत्येक घण्टे में 40 हजार मील की रफ्तार से चलता है। कितना बड़ा आश्चर्य है कि सभी ग्रह और नक्षत्र नियमपूर्वक चलते रहते है, न कभी थकते है, न कभी रूकते हैं और न ही कभी आराम करते हैं। इतना ही नहीं ये अरबों-खरबों ग्रह और नक्षत्र गतिमान होते हुए भी आपस में नहीं टकराते हैं। कैसी है ये व्यवस्था। प्रश्न उठता है कि वो कौन है जो सूर्य और पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों और नक्षत्रों में गति का संचार करता है। प्रकाश भी 1 लाख 86000 मील प्रत्येक सेकण्ड की चाल से चलता है। इसी प्रकार आवाज की भी अपनी गति होती है। क्या प्रकाश और आवाज ने, जो निर्जीव हैं अपनी गति स्वयं ही निर्धारित कर ली है।
इस प्रकार के हजारों प्रश्न हैं जिनका उत्तर ईश्वर की अवधारणा से इन्कार करते हुए ढूँढना बहुत मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। मैं तो पहाड़ों और नदियों में जंगलों के झूमते वृक्षों में, समुद्र की उफनती लहरों में, झरने के कलकल करते जलप्रपात में, तारों भरे आकाश में, आग की धधकती ज्वाला में, इन अरबों-खरबों ब्रह्माण्डों में, इस अनन्त विश्व में, इस आकाश के भीतर दिखाई देने वाले इस अन्तिम तारे में भी जिसके 1 लाख 86000 मील प्रत्येक सेकण्ड की चाल से चलते हुए प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में एक करोड़ वर्ष लगते हैं मैं उसी प्रियतम प्रभु को देखता हूँ।
इस लेख को पढने के पश्चात् ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करने वाले लोगों में ईश्वर के होने अथवा नहीं होने की जो भ्रान्तियाँ हैं, वो दूर हो सकें तो इसे मैं अपना अहोभाग्य समझूँगा। - राजेन्द्र प्रसाद आर्य (दिव्ययुग- अक्टूबर 2018)
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