विशेष :

सुरभिमय जीवन

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ओ3म् कस्ये मृजाना अति यन्ति रिप्रमायुर्दधानः प्रतरं नवीयः।
आप्यायमानाः प्रजया धनेनाध स्याम सुरभयो गृहेषु॥ (अथर्ववेद 18.3.17)

शब्दार्थ- (कस्ये) ज्ञान में (मृजानाः) अपनी आत्मा को शुद्ध करते हुए अत्युत्तम दीर्घ (नवीयः) नवीन (आयुः) जीवन को (दधानाः) धारण करते हुए (अध) और (रिप्रम्) मल को, पाप को, दोष को (अतियन्ति) दूर हटाते हुए (प्रजया) सुसन्तान से (धनेन) धनैश्‍वर्य से (आप्यायमानाः) बढ़ते हुए हम लोग (गृहेषु) घरों में (सुरभयः) सगुन्धरूप, उत्तम, प्रशंसनीय गुणों से युक्त, सदाचारी (स्याम) होवे।

भावार्थ- मनुष्यों के गृहस्थ जीवन का इस मन्त्र में सुन्दर चित्रण है-
1. प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान के द्वारा अपनी आत्मा को शुद्ध करना चाहिए।
2. उत्तम और दीर्घ जीवन प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।
3. जीवन के पाप-ताप, दोष और मलों को धो डालना चाहिए।
4. सुसन्तान का निर्माण करना चाहिए।
5. धनैश्‍वर्यों का उपार्जन करना चाहिए।
6. प्रशंसनीय गुणों से युक्त होकर घर में अपने सदाचार की दिव्य गन्ध फैलानी चाहिए। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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