विशेष :

जीवन का मोल

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गरीबी, अभाव के साथ-साथ दूसरों की उपेक्षा से दुखी एक व्यक्ति ने एक दिन एक संत से कहा, 'महाराज, आप तो कहते है कि मनुष्य का जन्म बहुत दुर्लभ है। लेकिन इतने कष्ट, तनाव, उपेक्षा अपमान के रहते मेरी नजर में तो यह कथन अतिश्योक्ति जैसा है। आप ही बताये आखिर जीवन का मोल क्या है?' उसकी बात सुन वह विद्वान संत मन ही मन मुस्कुराये और अपनी झोली में निकालकर उसे एक चमकीला पत्थर देते हुए बोले, 'जीवन के मोल की चर्चा फिर कभी पहले तू इस पत्थर का मोल मालूम कर। लेकिन ध्यान रहे, कोई कितना भी धन दे तुम्हें यह पत्थर किसी को देना नहीं है। केवल मोल लगाना है।' उस पत्थर को लिए वह व्यक्ति बाजार पहुंचा। उसकी नजर सबसे पहले एक रहेड़ी पर संतरे बेचने वाले पड़ी। उसने वह पत्थर उसे दिखाया तो संतरे वाले ने उसे खूब उल्ट पलट कर देखने के बाद कहा, 'बड़ा होता तो कहीं दीवार में लग जाता। छोटा तो खेलने के बाद ही आ सकता है। मेरे घर में कोई बच्चा नहीं है इसलिए मेरे लिए तो एक पैसे का भी नहीं। अगर फिर भी कुछ दाम लगाना ही पड़े तो ज्याद से ज्यादा एक संतरा ही इसके बदले दे सकता हूं।

उसने संतरे वाले को धन्यवाद किया और आगे बढ़ गया जहां एक गन्ना बेचने वाला था। उसने पत्थर को देखते ही एक झटके में उसे दूर फेंकते हुए कहा, 'अभी बोहनी भी नहीं हुई कि तू पत्थर लेकर आ गया। जाता है या यही पत्थर मार तेरा सिर फोंडू।'

उस व्यक्ति ने पत्थर उठाया और आगे बढ़ गया। आगे एक पंसारी की दुकान भी। उसने वह पत्थर उसे दिया तो उसे खूब ध्यान से देखने के बाद उसके बदले पांच किलो गुड़ देना स्वीकार किया। वह व्यक्ति कुछ आगे बढ़ा तो एक वैद्य के पास जा पहुंचा। वैद्य जी उस पत्थर की चमक से प्रभावित हुए और बोले, इसमें कोई औषधीय गुण तो मालूम नहीं पड़ता पर चमकदार कठोर पत्थर है। जड़ी बूटी को कूटने पीसने में काम आ सकता है। अगर चाहों तो इसका एक रुपया दे सकता हूं। आगे बढ़ा तो एक फलवाले के पास जा पहुंचा। उसने एक बार किसी धनवान को चमकदार हीरे की अंगुठी पहने देखता था। आज उसे लगा कि हीरा न सही चमकदार पत्थर ही सही। इसकी चमक देखकर कौन समझेगा कि हीरा है या साधारण पत्थर। यह सब सोच कर उसने पत्थर के बदले फलों का एक टोकरा या पचास रुपये देने की पेशकश की।

पत्थर लिए वह व्यक्ति चला जा रहा था कि सामने उसे सर्राफा बाजार दिखाई दिया। तो वह एक सुनार के पास जा पहुंचा। सुनार ने पत्थर को देखते ही पहचान लिया कि वह बहुमूल्य हीरा है जिसकी कीमत करोड़ों में है। परंतु वह उसे सस्ते में लेना चाहता था। पांच से शुरू कर वह उसकी कीमत धीरे-धीरे उसका मोल एक लाख तक ले गया पर जब वह किसी कीमत पर नहीं माना तो उसने तत्काल पुलिस को बुलाकर उस व्यक्ति को चोर बेईमान बताते हुए उनके हवाले कर दिया।

पुलिस अधिकारी उसे थाने ले गये और पूछताछ करने लगे कि उस जैसे साधारण आदमी वह हो नहीं सकता अतः उसने चुराया है। बात राजा तक पहुंची। उस व्यक्ति ने सारी सच्चाई उसके सामने रख दी तो राजा उस व्यक्ति और हीरे को लिए स्वयं उस विद्वान संत के पास जा पहुंचा। क्योंकि राजा समझ चुका था कि इसके पीछे जरूर बात हीरे से भी ज्यादा कीमती है। रास्ते में राजा ने उसे चेतावनी दी कि वह उसके राजा होने की बात संत को नहीं बताएगा। खैर वहां पहुंचकर उस व्यक्ति ने अभिवादन के बाद पूरी दांस्ता उस विद्वान् संत के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा, ''आज तो आपके लिए पत्थर ने मुझे फंसवा ही दिया होता। पर मुझे पत्थर नहीं जीवन का मोल जानना है। कृपया वह बताओं।' इस पत्थर और जीवन में बहुत समानता है। जो नहीं जानता कि यह हीरा वह इसका मोल कुछ भी लगा सकता है। पर जो जानता है उसके लिए यह बहुमूल्य है। पर कीमत सब अपनी अपनी समझ के अनुसार लगाते हैं। पर सत्य कोई-कोई जानता है। जो जान जाता है वह उसका सम्मान, सदुपयोग करता है।' राजा भी मर्म को समझ गया।


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