विशेष :

भोजन हुआ बे-स्वाद

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हमारे समाज में धनवान व मध्यम वर्ग रहते हैं। धनवान अपने जीवन यापन के लिए पैसे का खुलकर उपयोग करते हैं तथा मध्यम वर्ग सोच-समझकर व्यव करता है। निर्धन व्यक्ति देखता हुआ मन मसोस कर रहा जाता है। उसके पास पैसे नहीं है इसलिए आंखों में पानी भरकर देख ही सकता है। रो भी नहीं सकता।

हम बात कर रहे हैं भोजन की। भोजन सामग्री के भाव आज आसमान छूने में लगे हुए हैं। इस समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं है। सब अपनी दौड़ में दौड़ रहे हैं। अभी तक राजनेता चुनावी दौड़ में थे। अब उन्हें आराम तो मिल गया मगर चैन की नींद १६ मई तक कम ही आएगी। इस हाल में वे गरी की ओर क्यों ध्यान देंगे? क्योंकि उन्हें चिंता खाए जा रही है हार-जीत की।

गरीबी प्रातः उठकर मजदूरी करने निकला है, जब कहीं उसे एक वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पता है। एक वक्त पेट पर पट्टी बांधकर ही सोना पड़ता है। गेहूं, चावल के भाव आसमान छू रहे हैं। गरीब तबका इतनी मात्रा में नहीं खरीद सकता कि पुरे साल भर की दो जून को रोटी का बन्दोबस्त हो जाए। हम जिसे गरीबों का सहारा समझते थे, वे वस्तुएं बे-स्वाद हो चली हैं। सर्वप्रथम आप प्याज को ही लें उसका भाव दिनरात के फर्क पर है। उसे धनवान भी सोच समझकर ही खरीदता है। एक समय था जब प्याज महंगा होने से केंद्र की सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारों का ही पतन हो गया था। किन्तु आज किसी के कानों पर भी जूं तक नहीं रेंगती। क्या हमारे राजनेता बता पाएंगे कि यह प्याज जो गरीबों का मसीहा होता था, आज उनका दुशमन क्यों हो गया है। इसके भाव आसमान क्यों छू रहे हैं।

जहां तक सब्जियों का सवाल है उनका तो कहना ही क्या है? वे तो हर व्यक्ति से परे होने लगी हैं। दूसरा इन सब्जियों से पैसा कमाने वाले इन्हें गरीब तरीकों से इतना बढ़ावा देते हैं कि रातों रत धनवान बनना चाहते हैं। अपनाए जाने वाला तरीका आम आदमी को बीमारी का न्योता ही नहीं देता बल्कि बीमार कर देता है। सब्जियां उगाने वाले लोग आमजन को जहर खिला रहे हैं। अपने-अपनों को मृत्यु के आगोश में भेजकर क्या दिखना चाहते हैं यह समझ से परे की बात है। कमाना गलत नहीं हैं मगर गलत तरीके से कमाना गलत है। इस प्रकार के कार्य करने वाले भी कम आतंकवादी नहीं हैं। इनके साथ भी सरकार को वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जो आतंकवादियों व देशद्रोहियों के साथ होता है।

भोजन का स्वाद बिगाड़ने के लिए हर व्यक्ति जिम्मेदार है। जब तक जनता जिम्मेदारी को नहीं समझेगी तब तक भोजन बे-स्वाद ही रहेगा। हम सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं मगर इतना नहीं कि जितना हम उसे मानते हैं। हां सरकार की इतनी जिम्मेदारी जरूर है कि वह बढती हुई महंगाई की ओर ध्यान दें तथा उसे कम करने के उपाय करे। आम जनता भी अपनी जिम्मेदारी निभाए। सामान उतना ही खरीदा जाए जिससे काम चल जाए तथा इतना ही पकाया जाना चाहिए की वह पका हुआ सामान उसी समय खर्च हो जाए। आज हम प्रायः देखते हैं किसी के यहां समारोह या शादी वगैरह का कार्यक्रम होता है तो वहां व्यक्तियों द्वार भारी मात्रा में भोजन, पानी एवं अन्य वस्तुओं की अत्यधिक मात्रा में बर्बादी की जाती है जो महंगाई को निमंत्रण देती है कि आम आदमी पर भी पर भी बोझ डालती है, क्योंकि शादियों के सीजन में प्रत्येक चीजे बहुत अधिक महंगी हो जाती हैं और गरीब आदमी के हाथ से तो प्रायः दूर ही हो जाती हैं। थाली में उतना ही ले जितना खा सकें। झूठा फैकना बरबादी है जो महंगाई को निमन्त्रण देती है। इससे राष्ट्र का ही नुकसान है। राष्ट्र का नुकसान करने वाला देशद्रोही ही हो सकता है। इस लिए भाईचारा बनाते हुए हर बात का ध्यान रखें कि ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे हमें समाज में शर्मशार होना पड़ा। हमारा हर कदम देश की प्रगति व् खुशहाली के लिए उठाना चाहिए तभी हमारा भोजन का स्वाद स्वादिष्ट के लिए उठाना चाहिए तभी हमारा भोजन स्वादिष्ट हो सकेगा। अन्यथा तो वह बे-स्वाद ही रहेगा।


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