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सिर दर्द एवं उसकी चिकित्सा

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सिर दर्द स्वयं रोग नहीं है बल्कि यह अन्य रोगों का लक्षण है इसलिये पूर्ण निरीक्षण करने के उपरांत सिर दर्द का कारण जानकर उसे दूर करें, जिन-जिन कारणों से सिर दर्द होता है वे कारण तथा उनसे उत्पन्न सिर शूल की चिकित्सा आदि संक्षेप में ये हैं-
(क) पाचन विकार का सर दर्द - प्रायः अमाशय और आंतों की खराबी व कब्ज होने से भी सिर दर्द हो जाता है, ऐसी परिस्थिति में कब्ज तो मुख्य रूप से पायी जाती ही है, पाचन विकार काफी समय तक रहने पर इस प्रकार का सिर दर्द हमेशा रहने लग जाता है तथा भोजन के कुछ समय पश्चात तो पेट गैस बनकर विशेष ही सर दर्द बढ़ जाता है, रोग पुराना हो जाने पर सिर में चक्कर आते हैं और आँखों के सामने अंधेरा व हाथ पैरों में शिथिलता के लक्षण भी पाये जाते हैं।

(ख) स्नायु दुर्बलता से उत्पन्न सिर दर्द - दिमाग और स्नायु कमजोर हो जाने पर मामूली सा दिमागी कार्य करने, मन के विपरीत बात होने पर, अधिक लिखने पढ़ने से सिरदर्द प्रारम्भ हो जाता है एवं रोगी को निद्रा आनी कम हो जाती है।

(ग) जुकाम (नजला) - नजला जुकाम हो जाने से सिरदर्द प्रारम्भ हो जाता है, सर के पिछले भाग में भी दर्द बराबर बना रहता है, यह नजल, जुकाम बिगड़ने पर माथे में भारीपन, बालों की सफेदी, नाक में मांस बढ़ना, सुखी हड़जुरी रहना आदि लक्षण प्रतीत होते हैं।

(घ) सूर्य की गर्मी से भी सिर दर्द हो जाता है।

(ङ) रक्चाप से भी सिर दर्द हो जाता है।

सिर में रक्त की अधिकता या कमी होने पर भी सिर में भारीपन व दर्द मालूम होता है, माथे व सिर की गद्दियों में दर्द, आंखों के सामने चिनगारियां सी जान पड़ना, ह्रदय में घड़घड़ाहट होना, किसी भी कार्य में मन न लगना, कनपटी की नसें तथा स्नायु फड़कना, देह लाल पीत होना निद्रा कम आना, कमजोरी विशेष मालूम होना।
(च) पुराना कीटाणुजनक रोग रहना जैसे - सुजाक आंत्रिक ज्वर, मसूरिका बिगड़ना पर भी सिर दर्द हुआ करता है। रोगी की वृष्टि कमजोर हो जाती है, प्रारम्भ में दर्द मामूली होता है, परन्तु धीरे-धीरे बढ़ता जाता है रोगी को सुबह एवं रात्रि को त्रिफला चूर्ण, गोदन्ती ईसबगोल की भूसी, गर्म दूध के साथ दें। यह हर प्रकार की स्नायु पीड़ा, दांत दर्द, पोलिए का दर्द, कमर दर्द प्रदर कष्ट से आना जुकाम से पैदा सर दर्द और अंगो का टूटना महसूस हो, बुखार आदि का प्रसिद्ध योग है।

अधिक घी मक्खन से बने भोजन तथा अधिक खाने और सारे दिन बैठने से भी सिर दर्द हो जाता है। इस प्रकार का सिर दर्द प्रातः काल के समय हुआ करता है, एक नींबू का रस पानी में मिलाकर बिना नमक, शक्कर (खांड) के पिलाते रहने से पित्ताशय में उत्तेजना पैदा होकर सिर दर्द शांत हो जाता है। इस योग से शरीर से वायु रोग भी शांत होते हैं।

यदि रक्त में जमने की शक्ति की कमी से सर दर्द हो तो यह सर दर्द प्रातः काल के समय बहुत कष्टदायक होता है और ज्यों-ज्यों दिन चढ़ता है दर्द कम होता जाता है, शरीर पर पित्ती से उछाल जाती है, रोगी का चेहरा पपोटे फुले हुए शोथयुक्त हो जाते हैं। यह कष्ट सर्दियों में अधिक होता है, धनिये की मिंगी १०० ग्राम, शक्कर १०० ग्राम, काली मिर्च २० ग्राम के लड्डू बनाकर डेढ़ तोला दें, इस रोग की सफल दवा है।

अधिक रक्तचाप से उत्पन्न सिर दर्द में अजवायन सेक कर खाने से दर्द दूर हो जाता है, रक्तचाप की कमी से होने वाला सिरदर्द हो तो सर्पगंधादि वटी सेवन करें।
अधिक भोजन खाने और अजीर्ण होने से पैदा सिर दर्द में भोजन के पूर्व हिंग्वाष्टक चूर्ण दें।
पगड़ी बांधने, सिर पर अधिक बाल होने तथा सिर में जुऐं पड़ने पर भी सिर दर्द हो जाता है। दांत सड़ने, कान में कष्ट, अधिक पद्द्पान, कुनेन और लोहे की गर्म दवायें अधिक खाने, क्रोध, चिंता से भी सिर दर्द हो जाता है। अजवायन के पानी से सिर धोना, दांतों की पीड़ा हो तो फिटकरी के पानी से कुल्ला करना, अजवायन सेंक कर काला नमक मिलाकर दिन में तीन बार फंकी दें।

सूतशेखर रस, प्रवाल पिष्टी, स्वर्ण मक्षिक भस्म अग्निकुमार रस, शिरःशूल ब्रज रस सर दर्द में बहुत अधिक लाभदायक है।
तेज धुप में फिरने से सिर दर्द में आलू बुखारे २ से ८ तक खिलावें, अधिक सर्दी लग जाने से पैदा सिर दर्द में चाय, काफी पिलावें।
दिमाग व नाक में कीड़े पड़ जाने पर रोगी को कष्टदायक दर्द होता है, सूंघने की शक्ति कम हो जाती है, तालू में नासूर सा हो जाता है नाक एवं मुंह से गन्ध आने लग जाती है।

पित्तज सिर दर्द - इस प्रकार का सिर दर्द गर्म भोजन, पेय की अधिकता, समय पर भोजन न करना, एवं यकृत विकार से सिर दर्द हो जाता है। सिर में सख्त दर्द होना जी मिचलना, मुंह से पानी सा आना, मुंह का स्वाद कड़वा होना अदि पित्तज सर दर्द के लक्षण है।

चिकित्सा - रोगी की गोदन्ती भस्म एवं यवक्षार खिलाकर सिर दर्द को दूर करें तथा ठीक निदान करने के उपरांत ही चिकित्सा करें।

उपदंश व सुजाक से पैदा सिर दर्द रात्रि के समय अधिक होता है, हड्डियों के टूटने जैसा महसूस हो तो निश्चय ही यह सिर दर्द उपदंश एवं सुजाक से हुआ है। चन्दन तेल बतासे में तीन बूंद डालकर धारोष्ण दूध (गाय या बकरी का) के साथ दें।

अगर सिर दर्द दृष्टी कमजोरी होने के कारण से हुआ है तो रोगी को सही नम्बर का ऐनक लगानी चाहिए।
वृक्कों में पुराने शोथ के कारण सिर के निचले भाग में हर समय दर्द हो, रात्रि के समय कई बार मूत्र आता हो, उसके पश्चात भी शंका रहती हो उसमे एल्युमिनियन आता हो, सिर दर्द बड़ी आयु एवं बुढ़ापे में, वृक्कों में कमजोरी, धातु की क्षीणता, वृक्कों में शोथ के कारण होता है, इस प्रकार के सिर दर्द में काले तिल, गुड़, रसाथ की पपड़ी बनाकर दो-दो तोला सुबह एवं रात्रि को सोते समय देवें।

मलेरिया ज्वर से सिरदर्द बहुत जोर से होता है। यह सिर दर्द झटके के साथ हो तो रोगी को सौराष्ट्री भस्म, करंज के बीज नीम की पत्ती में घोटकर दिन में तीन बार दो-दो गोली गर्म पानी से खिलाकर इस रोग के विष को शरीर से निकालें। गुलाब अर्क या नौसादर अर्क पानी में मिलाकर कपड़ा भिगोकर सिर पर रखें। नौसादर भस्म तीन घण्टे से गर्म पानी द्वारा दें।

यदि मस्तिष्क में रसौली व गांठ के कारण सिर दर्द हो तो राई का कनपटियों पर लेप करें, तारपीन का तेल दो-दो या तीन-तीन बूंद नाक में डालने से नाक के कीड़े निकल जाते हैं और सिर दर्द से आराम हो जाता है, गर्मी की अधिकता से उत्पन्न सिर दर्द में चन्दन, कपूर, खस के अर्क में घिसकर माथे तथा कनपटियों पर लेप करें नींबू का शर्बत तथा आमले का मुरब्बा तथा छोटी इलायची खाने को दें।

स्वर्ण मक्षिक भस्म दिमागी कमजोरी नजला जुकाम आदि रोगों से पैदा सिर दर्द की सफल दवा है। इसको कुछ समय तक खिलाने से दिमागी तथा मरदाना कमजोरी दुरी होकर पुराने से पुराना सिर दर्द को आराम हो जाता है।

जब सिर झुकाने से सिर दर्द बढ़ जाये तो समझ लो कि स्नायु दर्द के कारण सिर दर्द है।
जब केवल माथे में दर्द हो तो मलेरिया का विष (साइनोसाइट्स) नाक के अन्दर शोथ का सन्देह करें तथा जब सिर दर्द दोनों तरफ हो तो विषैले प्रभाव का लक्षण है।

वैधानिक सलाह / परामर्श - इन प्रयोगों के द्वारा उपचार करने से पूर्व योग्य चिकित्सक से सलाह / परामर्श अवश्य ले लें। सम्बन्धित लेखकों द्वारा भेजी गई नुस्खों / घरेलु प्रयोगों / आयुर्वेदिक उपचार विषयक जानकारी को यहाँ यथावत प्रकाशित कर दिया जाता है। इस विषयक दिव्ययुग डॉट कॉम के प्रबन्धक / सम्पादक की कोई जवाबदारी नहीं होगी।


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