परम लक्ष्य
मनुष्य योनि में ही आत्मोद्धार संभव है। अस्तु अगर मनुष्य योनि में चूक गए तो उद्धार होना असंभव है। यह जीवन परमात्माप्रदत्त अमूल्य उपहार है। ऐसे दुर्लभ मानव जीवन का हर पल, हर क्षण बड़ा कीमती है, अमूल्य है। यहाँ हर पल बीत जा रहा है। हम मृत्यु की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अस्तु आलस्य, प्रमाद आदि को त्यागकर, विषय-भोगों के प्रति आसक्ति को त्यागकर मानव जीवन के परम लक्ष्य की ओर चलें और अपने मार्ग पर तब तक चलते रहें, जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।
Self-improvement is possible only in the human vagina. Therefore, if a man misses the vagina, then it is impossible to be saved. This life is a priceless gift given by God. Every moment of such a rare human life, every moment is very precious, priceless. Every moment is passing here. We are heading towards death. Astu, renouncing laziness, ecstasy, etc., renouncing attachment to objects and pleasures, walk towards the ultimate goal of human life and continue on your path until the goal is achieved.
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स्वाध्याय की आवश्यकता बार बार पाठ करने से ही सिद्धान्त की जानकारी होती है। सरसरी निगाह से देखने पर कुछ पता नहीं लगता। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और संस्कारविधि का अनेक बार गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा, अन्यथा कमजोरी ही बनी रहेगी। जैसे एक छात्र किसी विषय को ध्यान से नहीं पढता, तो वह विषय उसके लिये दुरूह बना रहता है। कठिन और...