भावुकता का माहौल
किशोरों का घर के वातावरण में लगाव घटता जाता है। दस-बारह वर्ष तक उन्हें प्रायः उसी चहार-दीवारी और छोटे समुदाय के बीच रहना पड़ता है। इससे ऊब और नीरसता लगने लगती है। स्कूल जाने के साथ-साथ घर से बाहर निकलने और नए-नए दृश्य देखने का अवसर मिलता है। पढाई के साथ-साथ कक्षा के छात्रों से परिचय बढ़ता है और भावुकता का माहौल जल्दी ही मित्रता के रूप में बदल जाता है। कई मित्र बन जाते हैं और न केवल स्कूल में, वरन उसके बाहर भी खेलने, सैर करने का मन चलता है। इस आधार पर घर और स्कूल के बीच का कुछ समय दोस्तों के साथ बीतने लगता है। इस समय में मौज-मस्ती ही नहीं, कभी-कभी तो आवारागर्दी भी जुड़ जाती है।
The attachment of adolescents to the home environment decreases. For ten to twelve years, they often have to live in the same boundary wall and small community. This leads to boredom and dullness. Along with going to school, there is an opportunity to get out of the house and see new scenes. Along with the studies, acquaintance with the students of the class increases and the atmosphere of sentimentality soon turns into friendship. Many become friends and not only in school, but also outside he likes to play, go for walks. On this basis, some time between home and school is spent with friends. In this time, not only fun, but sometimes vagabondism also gets added.
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स्वाध्याय की आवश्यकता बार बार पाठ करने से ही सिद्धान्त की जानकारी होती है। सरसरी निगाह से देखने पर कुछ पता नहीं लगता। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और संस्कारविधि का अनेक बार गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा, अन्यथा कमजोरी ही बनी रहेगी। जैसे एक छात्र किसी विषय को ध्यान से नहीं पढता, तो वह विषय उसके लिये दुरूह बना रहता है। कठिन और...