भगवान के स्वजन-संबंधी
भगवान के भी कुछ स्वजन-संबंधी होते हैं और कुछ मात्र परिचित ही। इन परिचितों में से कुछ तो कौतुकी-मसखरे जैसे होते हैं, कुछ चापलूसों, चाटुकारों को आगे-पीछे फिरते तो देखा जाता है, पर उनकी नियत केवल यही होती है कि किसी प्रकार दाँव चले, हाथ लगे और प्रशंसा के पुल बाँधने के बदले जो भी मिले, उसे झपटकर चंपत बना जाए। इस स्तर के लोग प्रदर्शन तो स्वजनों से भी बढ़कर करते हैं, पर परीक्षा का समय आते ही प्रकट हो जाता है कि इन प्रपंचियों का दिखावा मात्र ठगने, बहकाने और फुसलाने भर का था। प्रसंग जब सहयोग देने और सहायता करने का आता है, तो पल्ला झाड़कर अलग हो जाते हैं। मात्र उपहार बाँटने और कुछ अपने हाथ लगने की फिराक में ही अपने छम्य द्वारा कुछ-का-कुछ जताते रहते हैं।
God also has some relatives and some only acquaintances. Some of these acquaintances are like pranksters, some sycophants, sycophants are seen moving back and forth, but their only intention is that in some way the bets should be played, hands are held and instead of tying bridges of praise, Even if it is found, it should be made a champ in a hurry. People of this level perform more than their relatives, but as soon as the time of examination comes, it is revealed that the pretense of these Prapanchis was only to deceive, deceive and allure. When it comes to helping and helping out, they get separated. Only in the desire to distribute gifts and some to get their hands, they keep expressing something through their humility.
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स्वाध्याय की आवश्यकता बार बार पाठ करने से ही सिद्धान्त की जानकारी होती है। सरसरी निगाह से देखने पर कुछ पता नहीं लगता। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और संस्कारविधि का अनेक बार गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा, अन्यथा कमजोरी ही बनी रहेगी। जैसे एक छात्र किसी विषय को ध्यान से नहीं पढता, तो वह विषय उसके लिये दुरूह बना रहता है। कठिन और...