प्रकाश-पथ
अंतदृष्टि के साथ आत्मानुसंधान के पथ पर बढ़ रहा पथिक एक साधक एवं प्रकाश-पथ का राही बन जाता है। वह अपने वजूद की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता है। वह मानता है कि वह आज जो कुछ भी है, वह उसके पूर्व के विचारों, भावों एवं कर्मों का परिणाम है और वह आगे कुछ भी बनना चाहता है, वह उसके वर्तमान पुरुषार्थ के आधार पर तय होना है। अतः वह कठोर, श्रम, तप एवं साधना के बल पर अपने भाग्य निर्माण के पथ की ओर बढ़ता है। वह भाग्य पर आश्रित नहीं रहता, न ही सिर्फ भगवान भरोसे रहता है।
With insight, the wanderer who is progressing on the path of self-research becomes a seeker and a follower of the path of light. He takes full responsibility for his existence on himself. He believes that whatever he is today is the result of his past thoughts, feelings and actions and whatever he wants to become in the future is to be decided on the basis of his present effort. Therefore, on the strength of hard work, hard work, tenacity and spiritual practice, he moves towards the path of his destiny. He does not depend on luck, nor does he rely only on God.
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स्वाध्याय की आवश्यकता बार बार पाठ करने से ही सिद्धान्त की जानकारी होती है। सरसरी निगाह से देखने पर कुछ पता नहीं लगता। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और संस्कारविधि का अनेक बार गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा, अन्यथा कमजोरी ही बनी रहेगी। जैसे एक छात्र किसी विषय को ध्यान से नहीं पढता, तो वह विषय उसके लिये दुरूह बना रहता है। कठिन और...