रचनात्मक विचार
तरकश के तीरों की भाँति मन से विचार निकलते हैं। वे लक्ष्य भेद करने के बाद फिर से उसी व्यक्ति के पास लौट आते हैं, जिसने उन विचारों को उत्पन्न किया है। इसलिए यदि हम शुभ, सकारात्मक एवं रचनात्मक विचार प्रेषित कर रहे हैं तो ये वैचारिक जगत् में चलते हुए उन लोगों तक पहुँचे हैं, जिनकी ओर लक्षित किये गए थे। रचनात्मक विचारों के तीर पुनः हमारे पास लोगों के आशीर्वाद, सद्भावना और शुभकामना लेकर लौट आते हैं तथा हमारा मन अधिक-से-अधिक प्रेरित, प्रसन्न एवं उत्साहित हो जाता है। जब विध्वंसात्मक विचार अपने लक्ष्य की ओर जाते हैं तो फल भिन्न होता है। यदि लक्ष्य अधिक सशक्त है तो हमारे ऋणात्मक विचार उसका भेदन नहीं कर पाते और विचारों के बाण लक्ष्य से टकराकर दुगने वेग से हमारे अपने ऊपर ही वार करते हैं।
Like the arrows of a quiver, thoughts come out of the mind. They come back to the same person who created those thoughts after they have made their goals. Therefore, if we are sending auspicious, positive and constructive thoughts, then they have reached the people towards whom they were targeted while walking in the ideological world. The arrows of creative thoughts return to us again carrying blessings, goodwill and good wishes of the people and our mind becomes more and more inspired, happy and excited. When destructive thoughts go towards their goal, the result is different. If the goal is more powerful, then our negative thoughts are not able to penetrate it and the arrows of thoughts strike the target with double the speed on our own.
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स्वाध्याय की आवश्यकता बार बार पाठ करने से ही सिद्धान्त की जानकारी होती है। सरसरी निगाह से देखने पर कुछ पता नहीं लगता। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और संस्कारविधि का अनेक बार गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा, अन्यथा कमजोरी ही बनी रहेगी। जैसे एक छात्र किसी विषय को ध्यान से नहीं पढता, तो वह विषय उसके लिये दुरूह बना रहता है। कठिन और...