नेत्रहीन
हमारे शरीर के सभी अंग-प्रत्यंगों में आंखों का स्थान सर्वोपरि है। किसी नेत्रहीन व्यक्ति से ज्यादा असहाय और दुःखी अन्य कोई अपंग व्यक्ति नहीं होता। नेत्रों से जितना ज्यादा काम लिया जाता है उतना उनके पोषण एवं संरक्षण का उपाय नहीं किया जाता है। नेत्र जहाँ हमें देखने की शक्ति और क्षमता प्रदान करते हैं वहीँ हमारे चेहरे को सुन्दर या असुन्दर बनाने में भी कारण होते हैं इसलिए हमें यह हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि न सिर्फ हमारी नेत्र-ज्योति ही अच्छी बनी रहे बल्कि नेत्र भी सुन्दर, तेजस्वी और सौम्य बने रहें।
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स्वाध्याय की आवश्यकता बार बार पाठ करने से ही सिद्धान्त की जानकारी होती है। सरसरी निगाह से देखने पर कुछ पता नहीं लगता। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका और संस्कारविधि का अनेक बार गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा, अन्यथा कमजोरी ही बनी रहेगी। जैसे एक छात्र किसी विषय को ध्यान से नहीं पढता, तो वह विषय उसके लिये दुरूह बना रहता है। कठिन और...